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बाबा साहेब की अष्टम प्रतिज्ञा की समालोचना

*बाबा साहेब की अष्टम प्रतिज्ञा की समालोचना*
ओ३म्
:- *प्रथमेश आर्य्य*
*अष्टम प्रतिज्ञा:-* मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी समारोह को स्वीकार नहीं करूंगा। 
*समालेचना:-* वाह जी वाह ! प्रतिज्ञा भगवान बुद्ध के वचन पर चलने की करते हो और फिर उसी प्रतिज्ञा का उल्लंघन भी करते हो। 
आपको यह भी ज्ञात नहीं कि *ब्राह्मण* कौन होता है ?
आपने बौद्ध ग्रंथ भी नहीं पढ़े थे ?
आपके ठाकुर साहब अर्थात् बाबा बुद्ध कहते हैं कि *ब्राह्मण पर कभी प्रहार न करना चाहिये* ब्राह्मण महान पूज्य होता है इत्यादि वचन तो आपके धम्मपद के *ब्राह्मणवग्ग* में भरे पड़े हैं तो सबसे बड़े ब्राह्मणवादी तो बुद्ध और उनके चेले हुये ?
वेदों में तो बहुत ढूँढने पर मात्र 2-4 मन्त्र ही ब्राह्मण को श्रेष्ठ बताते हैं पर बुद्ध तो वेदों से भी एक कदम आगे हैं।
आपकी प्रतिज्ञा का सही अर्थ है कि मैं पंडो और दुराचारी व्यक्तियों से निष्पादित कर्म को स्वीकार नहीं करूंगा। पंडे वही हैं जो मूर्तिपूजक हैं और बालविवाह जातिप्रथा आदि कुरीतियों के समर्थक हैं।
ब्राह्मण तो कर्म व गुण से ही होता है और विद्वान् व्यक्ति तो सर्वत्र पूज्य होता फिर आपको ब्राह्मण से आपत्ति क्यों?
अतः आपकी प्रतिज्ञा स्वतः ही धम्मपद के प्रतिकूल है यदि ब्राह्मण शब्द का गुणवाची अर्थ लिया जाये। 
सारे समारोह विद्वान् जितेन्द्रिय दिव्य श्रेष्ठ गुण व कर्म से ब्राह्मण व्यक्ति द्वारा ही करवाने चाहिये।
और बातें भी ऐसे विद्वानों की ही माननी चाहिये न कि जिग्नेश मवानी वामन मेश्राम जैसे सड़कछाप व घोँचू प्रकृति के लोगों की।
आपकी प्रतिज्ञा का दूसरा मन्तव्य यह है :-
*हम सभी आपके परमभक्त मुस्लिम व ईसाई मौलवियों व पादरियों द्वारा सम्पादित किसी समारोह को स्वीकार नहीं करेंगे।*
*ओ३म्*
*वेदों की ओर लौटो*
*ओ३म् भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।*

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