*बाबा साहेब की तृतीय प्रतिज्ञा की समालेचना*
*ओ३म्*
:- *प्रथमेश आर्य्य*
द्वितीय के पश्चात् तृतीय प्रतिज्ञा की समालोचना करते हैं।
*३.तृतीय प्रतिज्ञा:-* मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी देवताओं में आस्था नहीं रखूंगा और ना ही उनकी पूजा करूंगा।
*समालोचना:-* श्रीमान पहली प्रतिज्ञा में ही ये नाम जोड़ देते तो पुनः प्रतिज्ञा की आवश्यकता न पड़ती।
आपके ज्ञान के लिये बता दूँ कि गौरी गणपति इत्यादि देवी देवता पुराणों में वर्णित हैं।
*वेदादि सच्छास्त्रों में नहीं।*
बस एक ही जिज्ञासा है कि क्या आप बौद्ध धर्म के ब्रह्मा विष्णु महेश इत्यादि काल्पनिक देवी देवताओं को मानते हैं? यदि कहों हाँ तो फिर प्रतिज्ञाओं का क्या औचित्य? यदि कहो नहीं तो फिर केवल हिन्दू धर्म का ही क्यों नाम लिया? शायद पक्षपात होगा।
आपकी प्रतिज्ञा का दूसरा मन्तव्य यह है कि
*हम सभी दलित व बाबा साहेब के परमभक्त मुस्लिम और ईसाई यह संकल्प करते हैं कि इस्लाम व ईसाईयत के किसी भी देवी देवता व पैगम्बर खुदा यहोवा इत्यादि में कोई आस्था नहीं रखूंगा और न ही उनको कभी भी पूजूंगा।*
आप को यह भी ज्ञात नहीं कि देवी देवता शब्द का अर्थ क्या होता है?
*देवो दानाद्वा दीपनाद्वा द्योतनाद्वा द्युस्थानीय भवतीति* - *निरुक्त* अर्थात् दान करने व प्रकाशन करने से देव संज्ञा होती है। इस प्रकार से ३३ कोटि देव होते हैं जो शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ नें लिखे हैं।परन्तु आप की प्रतिज्ञा में तो उन ३३ कोटि देवताओं का कोई वर्णन ही नहीं जिससे यह स्पष्ट है कि आपको वैदिक धर्म का निर्भ्रान्त ज्ञान न था। यदि ज्ञान होता तो ये प्रारंभ की तीन प्रतिज्ञायें करने की आवश्यकता ही न पड़ती। आपने तो बहुत सी वेदानुकूल प्रतिज्ञायें कर डाली हैं।
अतः इन तीन प्रतिज्ञाओं से आपका वेदसंबन्धी ज्ञान अति निम्न है ऐसा मैंने जाना।
*वेदों की ओर लौटो*
*ओ३म्*
*ओ३म् भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।*
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