🔥 *बाबा साहेब की षष्ठ प्रतिज्ञा की समालोचना*
*ओ३म्*
:- *प्रथमेश आर्य*
आपकी पाँच प्रतिज्ञाओं में तो बहुत सी वेदानुकूल हो गयीं परन्तु सब की सब कुरान बाईबल विरुद्ध हैं। अब छठवीं प्रतिज्ञा की समालोचना करते हैं।
*षष्ठ प्रतिज्ञा:-* मैं श्राद्ध में भाग नहीं लूंगा और न ही पिंड दान करूंगा।
तो श्रीमान ! आपको बता हूँ कि आपकी ते प्रतिज्ञा भी वेदानुकूल ही है। अब श्राद्ध का अर्थ जानिये:-
तृतीयः पितृयज्ञः -
तस्य द्वौ भेदौ स्तः - एकस्तर्पणाख्यो , द्वितीयः श्राद्धाख्यश्च। तत्र येन कर्मणा विदुषो देवान् , ऋषीन् , पितॄंश्च सुखयन्ति तत्तर्पणम्। तथा यत्तेषां श्रद्धया सेवनं क्रियते तच्छ्राद्धं वेदितव्यम्। तत्र विद्वत्सु विद्यमानेष्वेतत्कर्म सङ्घट्यते , नैव मृतकेषु। कुतः ? तेषां प्राप्त्यभावेन सेवनाशक्यत्वात्। तदर्थकृतकर्मणः प्राप्त्यभाव इति व्यर्थतापत्तेश्च। तस्माद्विद्यमानाभिप्रायेणैतत्कर्मो- पदिश्यते। सेव्यसेवकसन्निकर्षात् सर्वमेतत्कर्तुं शक्यत इति। तत्र सत्कर्त्तव्यास्त्रयः सन्ति - देवाः , ऋषयः पितरश्च। तत्र देवेषु प्रमाणम् -
पुनन्तु मा देवजनाः पुनन्तु मनसा धियः।
पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेदः पुनीहि मा॥1॥
-य॰ अ॰ 19। मं॰ 39॥
द्वयं वा इदं न तृतीयमस्ति। सत्यं चैवानृतं च , सत्यमेव देवा अनृतं मनुष्या , इदमहमनृतात्सत्यमुपैमीति तन्मनुष्येभ्यो देवानुपैति॥ स वै सत्यमेव वदेत्। एतद्ध वै देवा व्रतं चरन्ति यत्सत्यम्। तस्मात्ते यशो , यशो ह भवति य एवं विद्वान्सत्यं वदति॥
-श॰ कां॰ 1। अ॰ 1। ब्रा॰ 1॥
विद्वांसो हि देवाः॥
-श॰ कां॰ 3। अ॰ 7। ब्रा॰ 6॥
तीसरा *पितृयज्ञ कहते हैं। उस के दो भेद हैं-एक तर्पण और दूसरा श्राद्ध।* उन में से जिस कर्म करके विद्वान्रूप देव, ऋषि और पितरों को सुखयुक्त करते हैं, सो 'तर्पण' कहाता है। तथा *जो उन लोगों की श्रद्धापूर्वक सेवा करना है, उसी को 'श्राद्ध' जानना चाहिए।* यह तर्पण आदि कर्म विद्यमान अर्थात् जीते हुए जो प्रत्यक्ष हैं, उन्हीं में घटता है मरे हुओं में नहीं। क्योंकि मृतकों का प्रत्यक्ष होना असम्भव है। इसलिये उनकी सेवा नहीं हो सकती। तथा जो उन के लिये कोई पदार्थ दिया चाहे वह भी उन को नहीं मिल सकता। *इस से केवल विद्यमानों की ही श्रद्धापूर्वक सेवा करने का नाम 'तर्पण' और 'श्राद्ध' वेदों में कहा है।* क्योंकि सेवा करने योग्य और सेवा करनेवाले इन दोनों ही के प्रत्यक्ष होने से यह सब काम हो सकता है, दूसरे प्रकार से नहीं। सो तर्पण आदि कर्म से सत्कार करने योग्य तीन हैं-देव, ऋषि और पितर।
तो क्या आपको इस प्रकार के श्राद्ध कर्म में परेशानी है ?
अतः आपकी ये प्रतिज्ञा भी आपके वेदसम्बन्धी अज्ञान को स्पष्टतः सूचित करती है।
और आपकी इस प्रतिज्ञा का दूसरा मन्तव्य यह है:-
*हम सभी दलित और आपके परमभक्त मुस्लिम व ईसाई कभी भी मुर्दों की मजारों पर कुछ भी न चढायेंगे और न ही अगरबत्ती जलायेंगे। तथा उपर्युक्त वेदोक्त श्राद्ध व तर्पण क्रिया अवश्य करेंगे।*
जय भीम।
*वेदों की ओर लौटो*
*ओ३म्*
*ओ३म् भूर्भुवः स्वः।तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।*
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